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खेत की तैयारी: बोआई से पहले भूमि की 2 से 3 बार जुताई करके समतल बना लेना चाहिए| खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध खेत तैयार करते समय ही कर लेना चाहिए, ताकि वर्षा होने पर खेत में जल का जमाव न हो|
मिट्टी: दोमट मिट्टी पालक की खेती के लिए उपयुक्त होती है| अम्लीय मिट्टी में इसकी वृद्धि धीमी हो जाती है| अत: अच्छी उपज के लिए मृदा का पी एच मान 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए|
खरपतवार नियंत्रण : बुवाई के 20 से 25 दिन बाद निराई गुड़ाई करनी चाहिए| बाकि खरपतवार के अनुसार करनी चाहिए| यदि खेत में खरपतवार ज्यादा होते है, तो बुवाई के दो दिन के अंदर 3.5 पेंडीमेथलिन 30 प्रतिशत का प्रति हेक्टेयर 900 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए| जिससे खरपतवार का जमाव नही होगा|
बीज का उपचार: फसल को मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बीज का उपचार करना बहुत जरूरी है। बुवाई से पहले बीज को बाविस्टिन या कैप्टान 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें|
तापमान: देशी पालक गर्म एवं ठंडी जलवायु के अनुकूल है, परन्तु गर्म जलवायु में अच्छी पैदावार होती है| पालक में पाले को सहन करने की क्षमता पायी जाती है| विलायती पालक पहाड़ी तथा मैदानी क्षेत्रों में शरद ऋतु में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है| अपनी किस्म के आधार पर, पालक 50-70 °F डिग्री (10-21 °C) के बीच के तापमान में उगाया सकता है।
बुआई : मैदानी क्षेत्रों में देशी पालक की जून प्रथम सप्ताह से नवम्बर अंतिम सप्ताह तक बुवाई करते हैं| विलायती पालक की बुवाई अक्टूबर से दिसम्बर तक करते हैं| पहाड़ी क्षेत्रों में देशी पालक मार्च मध्य से मई के अंत तक बुवाई की जाती है और विलायती पालक के लिए मध्य अगस्त में वुबाई कर देनी चाहिए|
किस्में : पालक की खेती से अधिकतम उत्पादन के लिए अपने क्षेत्र एवं जलवायु के आधार पर किस्मों का चयन करना चाहिए|
बीज की मात्रा : पलक की खेती हेतु लगभग 30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है| जबकि छिडकाव विधि 40 से 45 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है|
सिंचाई: पालक बीज के अंकुरण के लिए नमी अत्यंत आवश्यक है| नमी की कमी महसूस होने पर खेत की जुताई से पूर्व सिंचाई अवश्य करें| बीज अंकुरण के बाद गर्म मौसम में हर सप्ताह सिचाई की आवश्यकता होती है और शरद मौसम में 10 से 12 दिन पर सिंचाई करते रहना चाहिए|
पोषक तत्व की जरुरत: समय समय पर पौधे को सही मात्रा मे पोषक तत्व की जरुरत पड़ती है | जो की पौधे को बढ़वार व फुटाव प्रदान कर सके| सही पोषक तत्व की उपलब्धता से पौधे ज़्यादा हरे होगे जिसके कारण उपज मे वृधि होगी|
एफिड्स : एफिड आमतौर पर पालक के पौधों का सबसे आम दुश्मन होता है। वयस्क और निम्फ पौधे के जूस पर ज़िंदा रहते हैं।
लीफ माइनर : ये ज्यादातर पत्तियां खाते हैं।
स्लग और घोंघे : ये दोनों अक्सर गीली मिट्टी से निकलते हैं और पत्तियों पर हमला करते हैं साथ ही सही प्रकार से नियंतरण न होने पर वो पूरा पौधा भी खा जाते हैं।
मोज़ेक वायरस : यह वायरस लगभग 150 विभिन्न प्रकार की सब्जियों और पौधों को संक्रमित करता है। पत्तियों के उतरे हुए रंग को देखकर इसकी पहचान किया जा सकता हैं। संक्रमित पत्तियों में पीले और सफेद धब्बे होते हैं। पौधों का आकार बढ़ना बंद हो जाता है और वे धीरे-धीरे मर जाते हैं।
कोमल फफूंदी : यह बीमारी पेरोनोस्पोरा फेरिनोसा रोगाणु के कारण होती है। पत्तियों को देखकर इसकी पहचान किया जा सकता हैं। इसके कारण अक्सर मुड़ी हुई होती हैं और उसमें फफूंदी और काले धब्बे लग जाते हैं।
स्पिनच ब्लाइट : यह वायरस पत्तियों को प्रभावित करता है। संक्रमित पत्तियां बढ़ना बंद कर देती हैं और उनका रंग पीलापन लिए हुए भूरे रंग का होने लगता है।
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लगभग 20 से 25 दिन के बाद पालक की पहली कटाई कर सकते हैं| इसके बाद 10 से 15 दिन के अंतराल पर 6 से 7 कटाई कर सकते हैं|
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